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समानता का अधिकार (right to equality)

 हमारे देश भारत में सभी के लिए समानता का कानून है इसके अंतर्गत हमारे समाज के सभी लोगों को समान अधिकार या प्रतिष्ठा प्राप्त होती हैं। जिसके  अन्तर्गत सुरक्षा, मतदान का अधिकार, भाषण देने स्वतंत्रता,  सार्वजानिक स्थान एकत्र होने स्वतंत्रता, सम्पत्ति का अधिकार, सामाजिक वस्तुओं एवं सेवाओं पर समान अधिकार आदि आते हैं। सामाजिक समानता में स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त करने की समानता, आर्थिक समानता, तथा अन्य सामाजिक सुरक्षा भी आती हैं। इसके अलावा समान अवसर तथा समान दायित्व भी समानता के अधिकार के अन्तर्गत आते है।


परंतु आज के समय में यह कार्य सही तरह से हो रहा हैं क्या ?


अगर वास्तविकता देखी जाए तो आज भी हमारा भारत देश कई वर्गों में बटा हुआ है जिसमें sc,St obc, उसके बाद जर्नर यह सभी वर्ग आते हैं और सभी वर्गों के लिए हमारे समाज में अधिनियम भी अलग-अलग हैं जिसके कारण चाहे वह सरकारी कार्य हो या फिर अन्य कोई कार्य इनमें भी वर्ग के हिसाब से छूट दी गई है और कार्य करवाया जाता हैं अगर यही हमारे देश में समानता का कानून है तो में इसको नही मानता हूं।



समानता का अधिकार होने के बाद भी हमारा भारत देश कई संप्रदाय में बटा है और उनके लिए हमारे देश में कानून भी अलग बने हुए है।







हमारे देश में सभी सरकारी भर्तियां गई इसे के अंतर्गत की जाती है जिसमें पहले sc st obc के बाद ही जर्नल वर्ग के अभियार्थियो का नंबर आता है जब हमारा देश एक है तो उसमे कानून भी एक ही होना चाहिए क्यों आज भी हमारा भारत देश एससी एसटी ओबीसी के नाम में बटा हुआ है और क्यों उनके लिए हमारे भारत देश में अधिनियम अलग हैं?


कई बार हमारे देश भारत में कभी जाति को लेकर संप्रदाय को लेकर किसी ना किसी कारण से झगड़े होते रहते हैं जब हमारे देश में सभी के लिए एक समान अधिकार है और कानून व्यवस्था की है तो ऐसा बार बार क्यों होता है कई बार राजनीति कारणों से तथा व्यक्तिगत होने वाले इन झगड़ों का मुख्य कारण क्या है आपने सोचा है कभी ?


अब बात आती हैं किसी भी सरकारी कार्यालय मै कार्य करने की उस में सभी सरकारी कार्यकर्मी सही तरह से कार्य कर रहे हैं? यह बात में सब के लिए नही बोल रहा हूं परंतु आज के समय में भी बहुत से कर्मचारी ऐसे ही जो अपना कार्य सही तरह से पूरा नहीं करते और पूरी तरह से संविदा कर्मचारियों पर निर्भर पर रहते हैं । अब बात आती है अब बात आती है सरकारी व संविदा कर्मचारियों की तो अधिकतर या देखा गया है कि भारतवर्ष के हर संस्थान मैं संविदा कर्मचारी कार्य कर रही है प्रत्येक कार्य हेतु सरकारी कर्मचारी संविदा कर्मचारियों पर निर्भर रहते हैं तब जाकर वहां कार्य पूर्ण रूप से होता है अगर हमारा अधिनियम देखा जाए तो एक सरकारी बहु कार्य कर्मी और एक संविदा कर्मचारी का कार्य समान है संविदा कर्मचारी को अपना कार्य पूर्ण रूप से करना पड़ता है अपने लिए और अपने परिवार के  भरण  पोषण के लिए। अगर बात बात सैलरी की की जाए तो एक संविदा कर्मचारी की तनख्वाह मुश्किल से 10 से 12000 के बीच में रहती है जबकि एक सरकारी बहु कार्य कर्मचारी की सैलरी 20 से 25000 के बीच में दोनों का कार्य समान होते हुए भी क्या समान कार्य समान वेतन का अधिनियम उन पर लागू नहीं होता। अगर इस चीज को आप समानता कहते हो तो मैं यह नहीं मानता कि यह समानता का कानून है ?




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