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भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (forest research institute)


अनुसंधान संस्थान देहरादून वैसे तो विश्व का सबसे बड़ा संस्थान है परंतु आज के समय जो यह हो रहा हैं वो आज तक कभी नहीं हुआ इसी चीज को देखते हुए आज मुझे विक्रम बेताल शो की एक बात याद आ गई समय परिवर्तनशील है किस का समय कब बदल जाय कुछ बोल नहीं सकते वन अनुसंधान संस्थान ने संस्थान मैं सरकारी कर्मचारियों की कमी होने के कारण कार्य करने हेतु प्राइवेट सिक्योरिटी सर्विस से कॉन्टैक्ट  और संविदा पर कर्मचारी रखा।






अब आपको यह जानना बहुत जरूरी है की संविदा और कॉन्टैक्ट मैं क्या अंतर है संविदा कर्मचारी वह कहलाते हैं जिनको संस्थान पहले से नियम एवं शर्तें रख कर कार्य में रखते है तथा उन्हें प्रत्येक वर्ष के बीच में 1 महीने का विराम मिलता है जिससे वह  अदालत में नियमित होने की मांग ना कर सकें और संस्थान  स्वयं से उनकी तनखा नियमित रूप से देता हैं। 20000से 30000 और उन्हें नियमित कर देता है अब बात आती है कांटेक्ट स्टाफ की यहां वहां लोग होते हैं जो किसी कंपनी के अंतर्गत कार्य करते हैं और उनकी तनखा कंपनी देती है और उनका संस्थान से कोई मतलब नहीं होता परंतु आज के समय में एफ आर आई जो भी हो रहा है वह बहुत गलत है सन 2019 में एफ आर आई के कांटेक्ट कर्मचारियों ने अपनी एक यूनियन का निर्माण किया अगर यही चीज देखी जाए तो किसी भी सरकारी संस्थान में जो व्यक्ति भी कांटेक्ट पर कार्य कर रहे हैं या किसी कंपनी के अंतर्गत कार्य कर रहे हैं वह यूनियन नहीं बना सकते । 




किस प्रकार इस यूनियन का निर्माण अवैधानिक तरीके से हुआ यह जो भी कर्मचारी से जुड़े उन्होंने आगे चलकर कोर्ट में केस डाल दिया जबकि वह कंपनी से आदमी थे ना कि एफ आर आई के उस यूनियन को बने आज 3 साल पूरे हो गए हैं तथा उसमें शामिल सभी कर्मचारी सुरक्षित हैं अब बात करते हैं भारतीय वन अनुसंधान संस्थान में हाल ही में क्या हुआ मार्च 2022 में बजट ना होने के अभाव में कांटेक्ट के कर्मचारियों को निकालना शुरू किया गया इसमें जितने भी यूनियन के कर्मचारी थे उनको छोड़कर बाकी सब को निकाला गया मैं मैम से बस एक बात पूछना चाहता हूं सब कर्मचारी आपके लिए एक तरह है तो आपने यूनियन वालों को क्यों नहीं निकाला इसी को और यूनियन वालो के लिए बजट कहा से आया देखते हुए मार्च 2022 में एक और यूनियन का निर्माण  हूवा जिसमें बहुत सारी अप्रिय जनक बातें हूवी और एफ आर आई के मुख्य गेट मै धरना दिया और डारेक्टर मैम का पुतला तक दहन किया गया परंतु जिन्होंने भी यह कार्य किया बहुत गलत किया बिना किसी की मजबूरी समझते हुवे ऐसा कार्य अनुचित था। परंतु समय को देखते हुए आज के समय में उस यूनियन का आज के समय मैं कोई भी अस्ति तुव  नहीं हैं। इसमें मजबूरी दोनो और से थी जो कर्मचारी निकाले गए थे उन्हें अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए यह कार्य किया। अगर देखा जाए तो इसकी जिम्मेदारी भी  थोड़ी बहुत खुद हमारी डेरेक्टर मैम है अगर वो सबको समानता से निकलती तो शायद यह सब नहीं होता।




अब मैं सिर्फ एक बात आपको कहना चाहता हूं अगर हमारी डायरेक्टर मैम को कर्मचारियों को निकालना ही था तो सभी को निकालते क्युकी सब कर्मचारी उनके लिए एक समान है आपकी इस बात का मतलब क्या समझे हम लोग कहा गलत है। अगर नियमों की बात की जाए तो आपके लिए सब एक हैं और सबके लिए एक ही नियम होना चाहिए।अब मैं आप सभी लोगो से जानना चाहता हूं हमारी गलती बस इतनी सी है हम लोग उस समय यूनियन में शामिल नहीं हुए । यहां तक की जो 20, 25 वर्षों से यहां पर कार्य कर रहे थे उनको भी निकाला गया कुछ को चेतावनी देकर कुछ को बिना बोले। अब बात की जाए अगर पुरानी यूनियन की तो उनका कहना है जब कंपनी पर बदली गई तब हमें क्यों नहीं निकाला गया हमें क्यों रखा गया इसका निर्धारण करने का अधिकार सिर्फ संस्थान को है ना कि उनको मेरी ऊपर कहीं हूवि बात से आप दोनो मैं अंतर समझ गए होगे। परंतु हमारी डायरेक्टर मैम के द्वारा किए गए इस भेदभाव का क्या कारण है? अगर यूनियन के आदमी काम कर रहे हैं वह पुराने हैं जिनको को निकाला गया वो भी बहुत पुराने थे।




यहां तक की यहां तक की बजट ना होने के कारण एफ आर आई ने अपने संविदा कर्मचारियों की अगस्त की तनखहा भी नहीं दी हे और ना ही जूनियर सर्च फॉलो की दी है।





अब अगर बात सरकारी भर्ती की  जाए तो ज्यादातर भर्तियों में घोटाला ही सामने आया है अब इसकी जिम्मेदारी किसकी है किसी को नहीं पता आज तक जब भी एफ आर आई मैं जो भर्ती होती उसको वो एस एस सी के अंतर्गत क्यूं नही करता इसकी वजह क्या है ?




अगर बात  यूनियन वालों की की जाए तो आज के समय में जितने भी वन अनुसंधान संस्थान मैं यूनियन के कर्मचारी हैं वह समय पर कार्यालय नहीं आते और कई दिन  नहीं भी आते उसके बाद भी वह अपने हस्ताक्षर करके कार्य किए बिना कार्य किए बिना पूरी तनख्वाह ले रहे हैं हमारी डायरेक्टर  मैम को  यह बात नही पता  मैम ने आज तक किसी भी कार्यालय मै जाकर नहीं देखा वह क्या काम हो रहा है   कि वह कार्य कर रही है या रोज आ रहे हैं या नहीं मैं मैडम से प्रार्थना करता हूं एक बार पुस्तकालय में जाकर स्वयं देखें और कैमरे की रिकॉर्डिंग चेक करें खास तौर पर 13 सितंबर की उसमें भी यह हो रखा है वैसे तो कई बार यह काम हुआ है  एक यूनियन का कर्मचारी कार्यालय में नहीं आया और उसकी पूरी हाजरी जाए ना जानें कितने समय से यहां कार्य चल रहा है इसका मतलब तो हमें यही समझ में आता है किस जो यूनियन में नहीं था वही गलत था । अपने आपसे यही कहना चाहूंगा यूनियन वाले अपनी मर्जी से कार्य करें उनके लिए कोई रोक टोक नहीं है तो फिर हमारी गलती कहा है। इसमें सबसे खास बात यह है जो यूनियन वाले अभी ऐसा कर रहे हैं क्या आपको लगता है अगर वह 60 साल तक हो गए या परमानेंट हो गए तो वो काम करेंगे जो अभी नहीं करते ?






13 सितंबर की तारीख को ध्यान से देखे आप उपस्थिति तालिका में 13 सितंबर ममता गुरुंग नही आई है जब की मास्टर रोल में उनकी उपस्थिति लगी है इसकी क्या वजह है चाहे तो आप 13 तारीख मैं कैमरे की रेकोडिंग भी देख सकते हैं।


सितंबर महा मैं भी बहुत से लोगों ने कार्य किया परंतु बजट ना होने की वजह से बीच में निकल दिया गया अब मेरा यह पर्सन है उनको उनकी तनख्वाह कोन देगा अगर इसी तरह से देखा जाए तो यूनियन वालो को भी तनख्वाह नहीं मिलनी चाहिए।




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