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हमारे जीवन की बरबादी की वजह हमारा शक।

सब रोग का इलाज है, शक का नहीं निदान ।
शक से हो पीड़ा बड़ी, शक है गरल समान।।

अर्थात: हमारे जीवन में हर किसी रोग का इलाज है पर शक का पूरी दुनिया में कोई भी इलाज नहीं है शक करने से हमें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है चाहे हमें शक किसी पर भी हो हम हमेशा उसी के बारे में सोचते रहते हैं और हमेशा परेशान रहते हैं और शक करना हमारे जीवन में जहर के समान है जो धीरे-धीरे मनुष्य को अन्दर से कमजोर कर देता है।




नमस्ते भाईयों और बहनों आज मैं आपको  कुछ ऐसे उदाहरण देने जा रहा हूं जिसे पढ़कर आप कभी भी अपने जीवन में किसी पर शक नहीं करेंगे चाहे वह आपका दोस्त हो आपकी प्रेमिका हो या आपकी जीवन साथी  चाहे वह आपका कोई भी क्योंकि हमारे जीवन में सभी तकलीफों परेशानियों का इलाज हो सकता है परंतु सक नहीं।

हमारे साथ आज के समय में बहुत से ज्ञानी पुरुष होंगे जिन्होंने हमारे पुराण महाभारत रामायण और अन्य सभी ग्रंथ पड़े व देखें होंगे रामायण में बिल्कुल स्पष्ट वर्णन किया गया है जब माता सीता को रावण हर कर ले गया था तो उस समय जब श्रीराम ने लंका पर विजय हासिल करने के पश्चात सीता माता की अग्नि परीक्षा ली गई जब उनसे भी प्रजा का मन नहीं भरा  तो प्रजा ने माता सीता पर  सक होने के कारण उनको दोबारा बनवास का दुख भोगना पड़ा।
महाभारत में भी कुछ ऐसा ही वर्णन हमें मिलता है द्रोपति के सम्मान के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ जो पूरे 18 दिनों तक चला।
अब मैं आप को एक ऐसा उदाहरण देने जा रहा हूं जिसे पढ़कर आप भी यह सोचने पर जरूर विवश हो जाओगे कि हम अपने जीवन में शक करें या नहीं।
हम किसी परिवार में जाते हैं जिन्हें हम भली भांति जानते हैं दोनों भाई बहन बैठे हैं परन्तु किसी कारण वश घर की बिजली कट जाती है और जब तक हम वापस आते समय वहां कुछ ग़लत देख लेते है तो हम या आप क्या सोचेंगे ?
मैं यह बात उन  सभी लोगों से पूछ रहा जो अभी भी किसी कारण सक मैं है ?


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अब मैं अपनी कही हुई बात का भी आपको जवाब दे देता हूं जिस समय उस घर में बिजली चली गई थी उस समय उसकी पत्नी उसके पास आई हो परंतु हमारी आंखें जो देखती है उसी पर यकीन करती है हमने जाते समय भाई बहन को देखा था और हमारे मनो दिमाग में बस यही एक घटना थी उसके बाद क्या हुआ यह किसी ने नहीं देखा फिर भी हमारे विचार ऐसे बन गए कि वह दोनों गलत है।
बहुत बार हमारे जीवन में आंखों देखी और कानों सुनी बात गलत साबित हो जाती है तो हम किस आधार पर किसी पर शक करते हैं। क्या हमने खुद उन्हें अपनी आंखों से ग़लत देखा?
क्यों लोगों कि बातों में आकर हम उसे गलत साबित कर देते हैं?
जिसे जो कहना है कहने दो जिसे जो कहना है कहने दो अपना क्या जाता है वक्त वक्त की बात है सबका वक्त आता है।
ऐसे ही अनेकों उदाहरण मैं आपको दे सकता हूं जिससे कि आपके मन में किसी के प्रति भी शक हो तो वह दूर हो जाए और किसी अन्य की बातों में आकर आप उसे गलत शब्द ना कहें। 🙏🙏🙏

अब हम चाहे कितना भी उस पर जितना भी सक कर लें हम चाहा कर भी उसे नहीं रोक सकते अगर वो ग़लत है तो हमेशा ही गलत रहेगा।

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