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नोकरी (job)

 आज के समय में हम में से ज्यादातर लोग अपना जीवन यापन करने के लिए किसी ना किसी संस्थान में कार्य करते हैं।


 चाहे वह संस्था सरकारी हो या अर्ध सरकारी , या हम किसी भी कंपनी में कार्यरत हो हमें वहां पर कार्य करके ही धन‌ की प्राप्ति होती है जिस से हमारा व हमारे परिवार का जीवन चलता है।





आपने यह सभी लोगों के मुंह से सुना होगा हा जी की नौकरी ना जी का घर कोई भी आदमी अपने सर की बातों को इसलिए सुनता है क्योंकि वह जानता है कि उसके पिछे उसका पूरा परिवार है। आप में से ज्यादातर लोग किसी ना किसी संस्थान में कार्य कर रहे हैं आप सभी के साथ अक्सर ऐसा होता होगा। और आप लोग अपने सर कि बात सुनकर भी खामोशी से अपना कार्य करते हैं। आपके मन में भी बहुत बार होता होगा और आपको बहुत गुस्सा आता होगा।


पर आज मैं आप सभी को एक ऐसा उदाहरण देने जा रहा हूं जिसे पढ़कर आप मेरी बात का जवाब जरूर देंगे। चाहे हम लोग किसी भी प्राइवेट संस्थानों में काम कर रहे हो  एक हद तक अपने सर की सुनते है जब तक वह उस जगह पर काम करते हैं या कर रहें होते हैं । जब हद से ज्यादा बात बढ़ जाती है तो उस समय हम यह नहीं देखते कि आगे क्या होगा। हमारे लिए कार्य कि कमी नहीं है हम कहीं भी काम कर सकते हैं।





अब मैं बात करना चाहता हूं हमारे  सर लोगों की हमारे सर का यह कर्तव्य है कि वह सभी से समान कार्य ले और कभी भी वह अपने परिवार के किसी भी सदस्य को लेकर अपने कार्यालय में आते हैं तो उन्हें अपने आप को अपने परिवार वालों कि नजरों मैं ऊंचा साबित करने के लिए किसी भी कर्मचारी से गलत  तरीके से बात ना करें अगर आप उसे उस समय  कुछ गलत बोलते हैं और  उसने आपको उसी समय कुछ गलत बोल दिया तो आपके परिवार में क्या इज्जत रह जाएगी वह तो प्राईवेट कर्मचारी हैं  वह कहीं ना कहीं काम कर लेगा।


अगर इसी बात को हम सरकारी कार्यालयों में लेकर चले तो आप को क्या लगता है वहां भी ऐसा होने कि उम्मीद है ?



जहां तक मेरा मानना है ऐसा जरूर होगा क्योंकि इस सभी सरकारी कार्यालयों में आज के समय में ज्यादातर  प्राइवेट व्यक्ति ही कार्य करते हैं।


आज के समय में किसी भी प्राइवेट नौकरी में 10:00 से 12000 के बीच सैलरी मिलती है कहीं यह बहुत कम है इसमें हम अपना गुजारा करें या अपने परिवार का ?



हम लोग आज के समय में एक ऐसी नोकरी कर रहे हैं जिसमें तनख्वाह का पता तक नहीं चलता कब आई और कब गई महीने के आखिरी से लेकर जब तक हमें तनख्वाह नहीं मिलती हम ऐसे ही अपना गुजारा चलाते हैं।



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