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हमारे दुवारा किया गया दान पुण्य


 पुराणों में दान के कई प्रकार बताए गए हैं तथा दान करने से पुण्य अर्जित होता है यहां भी वेदों में ही लिखा है।


कोई भी व्यक्ति जो धार्मिक प्रवृत्ति का है वहां दान वह पुण्य में जरूर आस्था रखता है और कई व्यक्ति ऐसे भी हैं जोकि धार्मिक प्रवृत्ति के ना होने पर भी दान देते हैं तथा उन्हें उस दान के बदले पुण्य की अभिलाषा नहीं होती।



अब प्रश्न यह उठता है कि दान किसको दे कौन दान का सही पात्र है और कौन दान को एक व्यवसाय के रूप में अपना चुका है???



आपने कई लोगों को देखा होगा जो गरीबों के कल्याण के लिए कई प्रकार की संस्थाएं चलाते हैं।



इन संस्थाओं में कई लोग बहुत राशि दान भी करते हैं तथा दान करने के उपरांत यह जानना भी उचित नहीं समझते कि जिन संस्थाओं को उन्होंने अपना धन दान स्वरूप दिया है वहा उस धन का किस प्रकार प्रयोग कर रहे हैं।



कुछ संस्थाएं ऐसी हैं जो कि गरीबों के लिए कार्य करती हैं परंतु कुछ संस्थाएं ऐसी भी हैं जो गरीबों के नाम पर आप से धन तो ले लेती हैं परंतु उस धन का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करते हैं जब इस प्रकार की संस्थाओं का सच आपके सामने उजागर होता है तो आप क्रोधित हो जाते हैं क्रोधित होना भी बनता है क्योंकि आपने यह धन दान किया तो यह सोचा कि यह किसी असहाय गरीब व्यक्ति के जीवन में खुशियां लाएगा परंतु ऐसा हुआ नहीं जिससे आपके मन को भी ठेस पहुंची तथा गरीब को भी खुशियां नहीं मिल पाई।




चलिए यह तो बात हो गई अप्रत्यक्ष रूप से जो आपने दान दिया उसके परिणाम की अब बात करते हैं जो दान आप सामने देते हैं उसकी अर्थात पंडितों को दिया जाने वाला दान।




पंडित जो आपके घर में हर शुभ अशुभ कार्य को संपन्न कराते हैं तथा कार्य को संपन्न कराने के पश्चात उन्हें जो दक्षिणा मिलती है वह ले जाते हैं।




शुभ कार्य में किया कार्य तो पंडितों को अच्छा खासा धन प्रदान करता है परंतु किसी की मृत्यु हो जाने पर भी पंडित अपने लालच से बाज नहीं आते।





जब कोई व्यक्ति मरता है तो उसके परिवार को आर्थिक शक्ति के साथ साथ मानसिक पीड़ा भी होती है परंतु पंडित उनका दुख न समझते हुए इस सारे कार्य में भी बस  अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं।




जब वह कहते हैं कि उनको दिया गया दान मृत आत्मा को पुण्य की प्राप्ति करवाऐगा तो यह कथन कही कही उनके लालच का प्रमाण देता है।




मैं यह नहीं कहता आप धार्मिक कार्य नहीं करवाए अवश्य करवाएं परंतु जो आप दान पंडितों को देते हैं उनसे अच्छा किसी गरीब को दे जो की वास्तविकता में उन सब दानो के हकदार हैं ।




पंडित या ब्राह्मण को वेद ग्रंथ में स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि वाह केवल भिक्षा मांग करें अपना जीवन यापन करेंगे और इसके अलावा यजमान किए दिए गए दान को सहर्ष स्वीकार करेंगे ना किए अपनी मांगे यजमान के आगे रखे।



आपने धार्मिक कार्य कीजिए परंतु विवेक से दान भी उसी को व्यक्ति को दीजिए जो सच में उसका हकदार है धन्यवाद।

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