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हमारे इस समाज मैं सच्चा साधु कोन कहलाने के योग्य है।

साधु भुखा भाव का धन का भुखा नाही धन का जो भुखा मिलें हो तो साधु नाही।।।



भारतीय संस्कृति व सभ्यता में प्राचीन काल से हमें अनेक साधु संतों का वर्णन मिलता है जिनके विचार ज्ञान व उपदेश देश हमारे जीवन को सही दिशा में तथा धर्म के अनुसार आचरण करने में हमेशा अग्रसर करते रहते हैं ।





भारतीय संस्कृति विश्व को अपने ज्ञान व आदर्शों से सदा ही विश्व का मार्गदर्शन करती आई है परंतु आज के समाज में कुछ लोगों ने साधु बनने का स्वांग किया हुआ है तथा स्वांग करने के साथ-साथ वह अपना हित भी देख रहे हैं तथा राष्ट्र की छवि को धूमिल करने में भी लगे हुए हैं ।





क्या आपने कभी सोचा की जिन साधु संतो का कार्य समाज को एक नई दिशा देना है क्या वह सच में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन ठीक प्रकार से कर रहे हैं आपके विचार से साधु क्या होता है ?





साधु भागती नहीं हो सकता जो अपना ही लाभ देखें साधु और व्यक्ति होता है जो समाज के लिए एक आदर्श बने तथा समाज के हित में ही कार्य करें एक श्लोक के द्वारा मैं आपको बताना चाहता हूं कि वेदों में साधु किसे कहा गया है। 





वृक्ष फल नहिं खात है नदी न संचय नीर परमारथ के कारने साधु धरा शरीर ।।।









 कबीर दास जी भी यही कहते हैं कि साधु मनुष्य के उद्धार के लिए ही कार्य करते हैं परंतु आज के साधु दिखावा ज्यादा करते हैं और समाज का मार्गदर्शन कम कई साधु तो ऐसे हैं जो सिर्फ अपना हित देखते हैं और क्रोध करते हैं।




 क्या वह भी साधु कहलाने योग्य है क्या वह समाज को सही दिशा दे पाएंगे जो खुद काम क्रोध और लालच में पड़े हैं। वह किस प्रकार साधु हैं उनको साधु की पदवी दी किसने है वह खुद ही अपने को साधु घोषित कर लेते हैं क्या वहां साधु कहलाने की योग्यता रखते हैं।




 यह निर्णय कौन करेगा कि कौन साधु है या योग्यता रखता है यह कौन नहीं जो हमारे समाज को सही दिशा की ओर ले जा रहा है वह साधु है जो मनुष्य के हित में कार्य कर रहा है वह साधु है लोभ काम क्रोध से मुक्त है वाह साधु है अब प्रश्न यह उठता है कि हमें कैसे ज्ञात होगा कि कौन सच्चा साधु है व कौन साधु बनने का ढोंग कर रहा है चुनाव आपका है और आपको ही सच्चे और झूठी बातों में अंतर देखना है धन्यवाद

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