जन्म लेने के पश्चात वह लोगों व अपने आस पास के वातावरण को देखता है जैसे जैसे वह बड़ा होता है अपने आस पास के वातावरण से प्रभावित होकर अपने लिए अलग अलग लक्ष्य निर्धारित करता है।
परन्तु किसी एक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु वह अग्रसर नहीं हो पता मनुष्य अपने जीवन में अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने लक्ष्य को भिन्न भिन्न तरीकों से प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहता है ।
परंतु क्या कभी वह मनुष्य विचार करता है कि जीवन में उसका असली लक्ष्य क्या है क्या आजीविका चलाने के लिए एक अच्छी नौकरी या फिर खूब सारा धन कमाना जिससे कि उसकी सारी जिंदगी आराम से काट सके ।
वास्तव में मनुष्य जो भी लक्ष्य अपने लिंए निर्धारित करता है वहां उसकी इच्छाओं व अभिलाषा की पूर्ति को ही ध्यान में रखकर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की चेष्टा करता है ।
मनुष्य के जीवन में हर एक लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ अपने लाभ तक ही सीमित रह जाता है क्या यही मनुष्य का अंतिम व सार्वभौमिक लक्ष्य है?
मनुष्य जीवन हमें बहुत प्रयासों के बाद प्राप्त होता है
ऐसा वेद पुराण कहते हैं परंतु क्या अपना जीवन सिर्फ अपने ही लिए जीना अपने फायदे के लिए सूचना क्या यही हमारे जीवन का लक्ष्य है ।
हमारे जीवन में और कुछ नहीं है जो भी हमने लक्ष्य अपने लिए बनाया निर्धारित किया है वह सिर्फ और सिर्फ हमारे लिए ही यह हमारे लाभ के लिए बनाया है कि मनुष्य का सिर्फ इतना ही कर्तव्य है कि वह अपने तक सीमित रहें यह लक्ष्य जो सिर्फ अपनी ही सुख और कामनाओं तक सीमित रहें क्या वह लक्ष्य अच्छा है या मनुष्य के लिए इस प्रकार के लक्ष्य अच्छे रहेंगे हमने कभी या विचार नहीं किया कि हमारे लक्ष्य का किसी और के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा ।
सिर्फ अपने और अपने प्रियजनों के लिए ही हम अपना लक्ष्य निर्धारित करते हैं हम कभी यहां नहीं सोचते कि इस लक्ष्य से क्या हम दूसरों के जीवन में कभी कुछ सुख ला सकते हैं सिर्फ अपने तक ही सूचना कहां तक के मनुष्यता सिर्फ अपना वाह अपने प्रिय जनों का लाभ देखना ही रह गई है स्वयं विचार कीजिए और इसका निर्णय स्वयं लीजिए धन्यवाद।
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